Tuesday 18 October 2011

वास्तविक तरक्की

सुबह रघु काका ने बांग लगाई " अरे राजीया (राजू) दिन दोपहर हुआ अभी तक तेरी नींद पूरी नहीं हुए "
रघु काका  रात को देर से सोया तो नींद आ रही बस १० मिनट और सो जाऊ : मैंने कहा
क्यों कुछ काम कर रहा था क्या : रघु काका ने पूछा
नहीं वोह facebook पर दोस्त online  थे तो बातो बातो में कब १ बजे पता ही चला .
रघु काका सोच में पड़ गए ....
खटिया पर से उठ कर निवृत होकर काका के पास बेठा
क्या बात है काका आज बहुत गहरे विचारो में खोये हो
काका बोले :भाई जमाना प्रगति कर रहा है ,और उनकी यह झूठी प्रगति कितने दिन चलेगी पता नहीं ...
खैर यह देख पाकिस्तान में हिन्दू  को राष्ट्रपति बनाया है
एक पल के लिए मेरा सर भी ठनक गया ,झट से काका के हाथ से अख़बार छिनकर देखा ... वाकई जैसा काका ने कहा वैसा ही लिखा .
अरे काका यह तो नारायण मूर्ती है इनफ़ोसिस के मालिक , गलती से छाप गया होगा ....
यह क्या है इनफ़ोसिस : काका ने पूछा
काका इनफ़ोसिस कंपनी वह  कंप्यूटर और मोबाइल के सॉफ्टवेर बनती है ..
खैर काका को कोई काम नहीं मैं निकलता हूँ ...
अरे कहा जा रहा है आज ? काका ने पूछा
अरे काका काम पर नहीं जाना क्या ..मैंने कहा ... अरे आज तो छुटी है ना...
हा ! आज तो छुटी है , प्रगति के इस दौर में हम प्रतिस्पर्धा की होड़ में ना जाने क्या क्या भूल रहे है ,, घर परिवार को समय नहीं दिया जा सकता
कुछ पल माता पिता के साथ नहीं बिता सकते ... सुबह जल्दबाजी में घर से निकलते (अरे आज लेट हो गया हु )ना किसी से बात करने का समय ना शांति से भगवन की भक्ति
दिन भर काम में व्यस्त ..फिर शाम को घर लोटे तो माथे पर चिंता की लकीर
पिताजी बोले : कैसा रहा दिन बेटा ... जवाब : कुछ खास नहीं पिताजी (आवश्यकता से जाया भी अर्जित कर ले तो भी यही राग अलापते है )
थके मांदे भोजन वोजन कर के सो गए .. फिर रोज़ का यही क्रम
काका अख़बार में आखे फाड़े बेठे थे ... ना जाने क्यों दिमाग में ख्याल आये की क्या हम सच में प्रगति कर रहे है
पर यह तो सिर्फ एक भोतिक प्रगति है .जैसे चाहे अपनी जरूरते तो हम पूरी कर लेते पर जो कुदरती जरूरते हमको चाहिए या हमसे किसी को चाहिए क्या हमको मिल रही है ,
या क्या हम किसी को दे पा रहे है
क्या प्रगति का मतलब  सिर्फ और सिर्फ पैसा अर्जित करना ही है .
तभी काका: बोले देखो अब हमारे हिंदुस्तान कितना प्रगति कर रहा है ,बच्चो को अब पुस्तकों का बोज़ ढोने की जरुरत नहीं पड़ेगी (सरकार छोटे आई पेड की शुरुआत जो की है )
हा काका यह तो बहुत अच्छी खबर है ,आई पेड बच्चो को मिल जायेगे तो किताबी बोझ  तो कम होगा ही साथ ही साथ facebook user  की संख्या बढ़ जाएगी
खैर तकनिकी युग है नित नए प्रयोग होते है ..
क्या बात है राजीया आज तू इतनी गहरी चिंता में ??? काका ने पूछा
काका क्या पैसा कमाना  ही प्रगति है ?
काका ने मेरे सर पर हाथ फेर कर कहा :- आज का ज़माना तो पैसा कमाने को ही तरक्की समझते है .. जिसके पास पैसा है वोह अपनी हुकूमत चलता है
इस तरक्की की होड़ में मेरे बेटे ने मुझे ठुकरा दिया ... क्यों की मैं काम कुछ सकता नहीं तो खाने को भी नहीं मिलता हर्ष (काका का बेटा ) ने भी कह दिया की कुछ कम नहीं सकते तो खाना क्यों खाते हो ... मान भर आय जब बेटे ने ऐसी बात कही
खैर वोह परदेश चला गया कमाने ... करने दो खूब तरक्की
देख राजू असली तरक्की वही होती जिससे हम दूसरो को खुश  रख कर खुद ख़ुशी से जी सके ..
धन  तो खूब अर्जित किया ,,आवश्यकता से भी ज्यादा पर क्या उस धन से किसी का भला हुआ है ?
पद तो बहुत उचा मिल गया पर उस पद का उपयोग करके किसका भला किया ?
मान सम्मान तो बहुत है पर भला किसका किया है ?
रट्टा मारकर की हुए पढाई कुछ काम की नहीं ..
किसी गरीब की सहायता में काम ना आये तो धन भी  व्यर्थ
माँ बाप की सेवा ना कर सके तो जीवन भी व्यर्थ है
इसलिए झूठी तरक्की से बच कर रहना
काका की डबडबाई आँखों में एक ही  मलाल था की काश हर्ष भी झूठी तरक्की के मोह में नहीं पड़ता तो काका आज बेटे के साथ हंशी खुसी जीवन बिताते
(क्यों की आज हर्ष भी अकेला पड़ गया पर किस मुह से काका के सामने आये ,हलाकि काका ने बहुत गुजारिश की )
बातो बातो में दोपहर हो गयी ...मैं और काका खाना खाने के लिए चल पड़े , सच में काका की कही बातो में कडवी  सच्चाई है जिसको हम नकार देते

:-राजू  सीरवी

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