Wednesday 19 October 2011

सफ़र



गाँव गए बहुत साल हो गए ! भला जायें भी तो कैसे ,भला काम धंधा छोड़कर घुमने की फुर्सत किसे है !
हम सिर्फ तरक्की करने में ही रह गए ! अच्छा खासा व्यापर ,और पैसे कमा रहे है ! पर यह भी तो ठीक नहीं है ना की पैसे कमाने के चक्कर में अपनी माटी अपने प्रदेश को ही भूल जाये !
चलो सोचा इस बार तो अपने देश होकर ही आएंगे ... आखिर साथ क्या चलने वाला है .. तन के कपडे तक साथ नहीं चलेंगे तो धन दौलत की क्या बिसात ..
और रही बात हमारी आने वाली पीढ़ी (बच्चो के लिए) के लिए धन दौलत जमा करने की बात तो इतनी तो हो ही गयी ! अब ज्यादा करेंगे तो वो(बच्चे ) क्या करेंगे ! अगर उनके लिए पूरी ज़िन्दगी का बंदोबस्त
करेंगे तो वो तो आलसी हो जायेंगे ना ... और फिर बुरी आदते भी सीखेंगे .. भाई बाप कमा कर रखेंगे तो बेटे तो ऐश ही करेंगे आखिर यह कलयुग जो है ! मैं देख रहा हूँ , पटेल साहब ने अपार धन दौलत कमाई है , भाई मेहनत भी खूब की है ! रात दिन एक कर दिए धन अर्जित करने के लिए ! बेटे और 1 बेटी है सब को अच्छी तालीम भी मिली, पर अब बाप ने इतना धनार्जन किया  है तो बेटो को अब धनार्जन की जरुरत  नहीं समझते .अब तो पटेल साहब की भी उम्र हो गयी बस खाना वक़्त पर मिल जाये तो अच्छी बात , पर अभी भी होसला है जितना हो सके कमा ही रहे है पर बेटे बाप के धन पर मज़े कर रहे है ! काम धंधे में कोई हाथ बटाता नहीं . तो भाई हमें ना तो पटेल साहब जितना अर्जित करना है और ना ही खुद को दुःख के दलदल में धकेलना चाहते .. कहते है ना " अति  शब्द सबके लिए दुखदायी ही होता है !
खैर ट्रेन का टिकट बुक करवाने के लिए लिए चल दिया !
भाई साहब एक टिकट बना दो जोधपुर के लिए : मैंने टिकट बनाने वाले से कहा
कब का सर ? :टिकट बनाने वाले ने पूछा
अगले महीने की १५ तारीख  का , हा अभी एक महिना है , क्या करे ट्रेन में जल्दी बुकिंग ना करवाओ तो बैठने की क्या खड़े होने की जगह भी मिलना मुस्किल !
सर १७५ वेटिंग है ,बुकिंग कर दू क्या :
क्या ? अभी एक महिना है और फिर भी इतनी वेटिंग ,करदो भाई क्या क्या करे आखिर बहुत सालो बाद गाँव जा रहे जैसे तैसे चले जायेंगे ! बहुत बेईमानी करते है यह सरकारी अफसर भी टिकट की भी कालाबाजारी होती है !
अब पैसा है ही ऐसी चीज़ की किसी ब्रम्हचारी को भी भ्रष्ट बना देता है !
खैर इस देश के हालत कब बदलेंगे इसका इंतजार सबको है ! पर जब तक खुद इमानदार नहीं बनते तब तक यह हालत बदल ही नहीं सकते ! भाई अपना काम निकालने  के लिए इन्सान क्या क्या नहीं कर रहा आजकल , पैसा फेक कर कुछ भी काम आसान किया जा सकता है ..
मैं अपने काम में व्यस्त रहता .. दिन निकले गए . तारीख भी गई गाँव जाने की...
रेलवे स्टेशन पंहुचा .. पता चला ट्रेन थोड़ी देरी से चल रही है ! चलो थोड़ी देर यही बैठ जाता हूँ !
ट्रेन स्टेशन पर आ गयी ..अपनी सीट पर जाकर बैठा ...
रात के १२ बजे थे , सो गया ! ट्रेन चल पड़ी ..मैं भी चादर तान कर सो गया .. अब गडगडाहट में नींद किसे आती ! आँख लगती अचानक कुछ आवाज़ आती नींद कि पो बारह !
सुबह हो गयी उठ कर निवर्त होकर अपनी सीट पर आकर बैठा . चाय वाला आया तो चाय ले ली .. चुस्किय ले रहा था ,कि एक छोटा लड़का हाथ में बड़ा सा कपडा लिए ट्रेन कि बोगी साफ़ किये जा रहा था !
आधे तन पर फटे कपडे . सफाई करके सबसे रुपये २ रुपये कि गुजारिश कर रहा था .. कोई देता कोई नहीं .. मैंने भी दिए ! पर मेरे मान में कई सवाल पैदा कर गया वोह लड़का ! क्यों यह लड़के शिक्षा से वंचित रहते.क्यों माँ बाप इनको पढ़ने कि बजाय छोड़ देते कि कमाओ और खाओ ! और सरकार भी इनको देख कर अनदेखा कर देती ! खैर मैं अकेला तो देश को सुधरने से रहा  ... ट्रेन अपनी गति से चल रही थी कही हरियाली तो कही सूखे .. कही पहाड़ तो कही घाटी बहुत ही सुन्दर नज़ारा था !
अचानक ट्रेन रुकी . लगता कोई स्टेशन आया ! मैं नीचे उतरा और कुछ खाने के लिए ले आया .. वापस अपनी सीट पर आ गया ! तभी एक बुजुर्ग दम्पति और एक लड़की मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठे ! मैंने जानबुझकर उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया ! तभी उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि उनके बैग रखवाने में थोड़ी मदद करू .. सो मैंने की ! जान पहचान भी कर ली ,वो आबू  उतरेंगे . घुमने जा रहे पोती के साथ .. बेटा है काम में इतना व्यस्त की वक़्त पर खाना खाने की फुर्सत नहीं ... खैर यह उनका निजी मामला है मैं कोई दखल नहीं देना चाहता ! पर मन में सवाल जरुर आ जाते की खूब धन कम लेते पर क्या माँ बाप उससे वाकई खुश है , क्या उनके साथ वैसा ही हो रहा जैसा वोह चाहते है !
दोपहर का वक़्त ह गया मैंने भी खाना खा लिया वोह लोग खाना खा रहे थे ! मैंने लड़की का नाम पूछा, "साधना" बताया था ! वह डिप्लोमा कर रही थी ! जान पहचान बढ़ी .. अच्छे स्वाभाव की थी बिलकुल दादा दादी की तरह ! उसमे मेरा e-mail ID लिया ताकि हम contact में रह सके ! उसे भी मेरी तरह लिखना और पढना बहुत अच्छा लगता था !
नींद आने लगी सोचा थोडा लेट जाऊ ..
सोया ही था की कुछ किन्नर  आये और पैसे मांगने लगे ,,नहीं दे  तो बत्तमीजी  करते ! मुझसे भी 50 रुपये छिन  लिए , साधना से भी पूछने लगे मैंने कहा हम सब एक ही परिवार के है , साधना के चेहरे पर मुस्कुराहट सी थी ! शायद  उसे अच्छा लगा की मैंने उनको अपना परिवार वाला समझा ! साधना ने कहा " कैसे इन्सान है यह भी जोर जबरदस्ती से वसूली , कुछ तो इंसानियत होनी चाहिए " मेरे मन में भी यही बात थी पर मुझे लगता कही न कही उनकी भी मजबूर है !
किन्नर  पूरी ट्रेन में वसूली कर के वापस हमारे कोच में आकर मेरे पास  वाली सीट पर बैठे ! वैसे वोह इतने भी बुरे नहीं की हम उनसे घृणा करे ! मैंने उनमे से एक को पूछा की आप में से कितने लोग पढ़े लिखे है ?
हम में से लगभग सब पढ़े हुवे है , पर यह दोनों डिग्री (इशारा करते हुवे ) होल्डर है
मेरा माथा ठनक गया डिग्री होल्डर और ट्रेन में वसूली ? साधना  भी आश्चर्यचकित नज़र से मुझे देखने लगी शायद वोह भी यही सोच रही ..
मुझसे रहा नहीं गया मैंने किन्नरों से पूछ ही लिया :-आप सब डिग्री होल्डर हो तो यहाँ पैसे मांगने की क्या जरुरत कही जॉब क्यों नहीं करते
किन्नर  तनिक उदास मन से " साहब हमको कौन जॉब देगा, न सरकार हमको नोकरी दे सकती न कोई प्राइवेट कंपनी .. साहब हमको भी ऐसे काम करने का कोई शौक नहीं  है . पर क्या करे मजबूरी है , साहब आपने कही भी किसी भी प्रमाण पात्र या फार्म में (स्त्री या पुरुष तो होते ही है ) नपुंसक का विकल्प है ? न जन्म प्रमाण पात्र ,न मृत्यु प्रमाण पात्र में ,न किसी नौकरी के फार्म में ,न किसी प्रतियोगिता फार्म में , न हमारे लिए नौकरी का प्रबंध , हमको सिर्फ और सिर्फ हेय दृष्टी से देखा जाता है , तो हम इसके सिवाय क्या करे !
मेरी जुबान को मनो  ताला लग गया . कुछ शब्द नहीं बोलने के लिए , क्यों की उनकी बातो को हम नकार नहीं सकते जो सच है , सच में इनके लिए नौकरी या और किसी सुविधा के लिए कोई विकल्प नहीं है !
खैर आबू आ गया किन्नर भी उतर गए और साधना और उनके दादा दादी भी .
बहुत अच्छा लगा तुमसे मिलकर भगवान ने चाहा तो फिर मिलेंगे बेटा :साधना के दादा दादी ने कहा
साधना ने भी मुस्कुराकर विदाई ली ...
ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी तभी साधना दौड़कर आई और मुझे एक डिब्बा दिया और कहा " मेरी तरफ से आपके लिए पहला तोहफा "
ट्रेन चल पड़ी .. मैंने डिब्बा खोलकर देखा रस्सगुल्ले थे ! एक पल के लिए चेहरे पर मुस्कुराहट सी  आ गयी , कल तक जिनको मैं जनता नहीं था आज वोह मेरे अपने जैसे लगने लगे पर जो अपने है वोह न जाने क्यों बेगाने हुवे जा रहे है ! खैर साधना से तो मैंने रस्सगुल्ले ले लिए पर उसको मैं कुछ नहीं दे सका ! अगली बार जब भी मिलेंगे तब मैं उसको तोहफा दूंगा .
इसी तरह खयालो में शाम तक जोधपुर पहुच गया ,
और मन में कई सवाल अभी भी है ,पर ज़िन्दगी का सफ़र भी अभी बहुत है ,, और किसी यात्रा में और कुछ सवालो के जवाब भी मिल जायेंगे !
:-राजू सीरवी (राठौड़)

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