Sunday 30 October 2011

::अधुरा सच::

एक नाविक तीन साल से एक ही जहाज पर काम कर रहा था | एक रात वह नशे में धुत हो गया | ऐसा पहली बार हुआ था | कप्तान  ने इस घटना को रजिस्टर में इस तरह दर्ज किया "नाविक आज रात नशे में धुत था "|
नाविक ने यह बात पढ़ ली | वह जानता था कि इस एक वाक्य से उसकी नौकरी पर असर पड़ेगा ,इसलिए वह कप्तान के पास गया ,और माफ़ी मांगी और कप्तान से कहा कि उसने जो कुछ भी लिखा है ,उसमे यह भी जोड़ दे कि ऐसा तीन साल में पहली बार हुआ है ,क्यों कि पूरी सच्चाई यही है | कप्तान ने मन कर दिया और कहा " मैंने जो कुछ भी रजिस्टर में लिखा वह सही है ,वही असली सच्चाई है "|
अगले दिन रजिस्टर भरने कि बारी नाविक की थी | उसने लिखा " आज की रात कप्तान ने शराब नहीं पी |'' कप्तान ने इसे पढ़ा और नाविक से कहा कि या तो वह इस वाक्य को बदल दे या पूरी बात लिखने के लिए आगे कुछ  और लिखे ,क्यों कि जो लिखा गया था उससे जाहिर होता था कि कप्तान हर रात शराब पीता था | नाविक ने कप्तान से कहा कि उसने जो कुछ भी रजिस्टर में लिखा ,वह सच है |
दोनों बाते सही थी ,लेकिन दोनों से जो सन्देश मिलता है ,वह एक दम भटकाने वाला है ,और उसमे सच्चाई की झलक नहीं है |

बढ़ा चढ़ा कर कहना 
सच को बढ़ चढ़ा कर कहने से दो बाते होती है -
  • इससे हमारी बात का असर कम होता है ,और हमारी विश्वसनीयता घटती है |
  • यह एक आदत की तरह है | एक आदत सी बन जाती है | कुछ लोग बात को बढाए चढ़ाए बिना सच कह ही नहीं पाते | 
निष्कपट बने -
निष्कपट होना मन की एक भावना है | इसका सबूत देना मुश्किल है | मन में कोई कपट रखे बिना दूसरो की मदद करने की भावना हमें अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद देती है |
दिखावे से दूर रहना -
मुसीबत में पड़े किसी दोस्त से यह पूछना काफी अखरता है कि " मेरे लायक कोई काम हो तो बताओ " क्यों कि ऐसा मदद करने के मकसद से नहीं ,बल्कि दिखावे के लिए कहा जाता है "अगर हम सचमुच मदद करना चाहते है तो करने लायक कोई उचित काम सोचिए और कीजिए |
बहुत से लोग अपने स्वार्थ को छिपाने के लिए इंसानियत का नकाब लगा लेते है ,ताकि जब कभी उन्हें तकलीफ हो तो वे बदले में हक़ जताते हुए सहायता मांग सके |
झूठी और बेकार कि नाटक बजी से दूर रहे |
निष्कपटता सही फैसले का मापदंड नहीं है | कोई इमानदार होते हुए भी गलत हो सकता है |
:-राजू सीरवी (राठौड़)

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