Saturday 29 October 2011

::पर्यावरण::

यह नदिया ,यह सागर
होकर भाप ,बन जाते बादल 
उड़ते है मीलो आकाश में,
जहाँ होता है बरसना ,बरस पड़ते उल्लास में
लगी बरसात की झड़ी ,लहला गए खेत खलियान
हरियाली की चादर ओढ़े ,मुस्कुरा रहे है मैदान
वक़्त बदला ,इन्सान भी बदले
समय की है ऐसी धार
कर रहे कलुषित वातावरण को
अब नहीं आते वसंत बहार
खो गयी मौसम की खुशबु
सुने लग रहे नदिया पहाड़
मत काटो इन बेजुबां पेड़ो को
खुशहाल रहेगा ये जहाँ और किसान
वक़्त रहते अगर न चेते
मिट जायेगा नामुनिशान
आँखे बंद ,कान भी बंद है इन्सान की
और मर रहे चुपचाप
अगर हो स्वच्छ वातावरण का स्पंदन
हर वक़्त रहे आनंद ही आनंद
:राजू सीरवी (राठौड़)
























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