Thursday 20 October 2011

::रास्ता बनाने वाला ::


एक बुजुर्ग , जो एक सुनसान सड़क पर जा रहा था ,शाम होते -होते ठण्ड ठिठुरता पहुंचा ,एक लंबे ,गहरे और चौड़े दर्रे के करीब ,
जिसके अन्दर तेज़ पानी बह रहा था ! बुजुर्ग ने शाम के धुंधलके में उसे पार किया ! पानी कि धारा से उसे कोई दर नहीं लगा !
मगर वह पीछे मुड़ा सुरक्षित पर करने के बाद , और उन लहरों के आर पार एक पुल बनाया !
"ओ बुजुर्ग " एक साथी यात्री ने उसे पुकारा ,"तुम इसे बनाने में बेकार मेहनत कर रहे हो " !
तुम्हारी यात्रा दिन के ढलते ही ख़त्म हो जाएगी ;और फिर तुम कभी इस रस्ते से नहीं गुजरोगे:
तुमने इस चौड़े और गहरे दर्रे को पार कर लिया है -तुम इस धारा पार पुल क्यों बना रहे हो ? "
उस बुजुर्ग ने अपने सिर को उठाकर कहा "प्यारे दोस्तों ,जिस रास्ते से मैं आया हूँ,उस रह में मेरे पीछे आ रहा है एक नौजवान ,जिसे यही से गुजरना है "
यह दर्रा जो मेरे लिए मुश्किल रहा है ,उस सजीले नौजवान के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है !उसे भी शाम के धुंधलके में पार करना पड़ेगा !
मेरे दोस्तों मैं यह पुल उस नौजवान के लिए बना रहा हूँ !

राजू सीरवी (राठौड़)

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